Monday, February 14, 2011

हिन्‍दु-मुस्लिम विवाद ने हमें अपाहिज बना दिया : अब्‍दुर रहमान

 

डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों के साथ होने वाले तरह-तरह के ज़ोर-जुल्‍म की कहानियां सरोकार को भेज रहे हैं. इस बार पेश है वाराणसी में हिन्‍दु-मुस्लिम समुदायों के बीच हुए विवाद में पुलिसिया गोली का‍ शिकार बने बुनकर अब्‍दुर रहमान की दास्‍तां उन्‍हीं की जुबानी :

मेरा नाम अब्‍दुर रहमान, उम्र 24 साल है। मैं एन 13/1202 लमही, सराय सूरजन, बजरडीहा, वाराणसी का निवासी हूँ। मेरे चार भाई, दो बहन हैं। पिता जी अलग रहते हैं, हमारी माँ की देहान्त हो जाने पर पिता जी ने दूसरी शादी कर ली थी। दूसरी माँ को दो बच्चे है।

मेरे साथ जो घटना घटी, वह दिन था 11 मार्च 2009, और समय था 11 बजकर 30 मिनट। मैं घर से अपने चाचा से मिलने के लिए निकला था। मेरे चाचा गौसिया मदरसा के बग़ल में रहते है। गौसिया मदरसा के पहले एक गली है। हम उस गली से जैसे ही दो क़दम आगे बढ़े, तभी पुलिस वालों ने फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की गोली हमारे दाहिने पैर और गुप्तांग के पास लगी। हम वहीं पर गिर गए। इसके बाद पुलिस वालों ने हमें घसीटते हुए अपने जीप में फेंक दिया और सरकारी अस्पताल, कबीर चौरा में भर्ती करा दिया। धीरे-धीरे हमारी आँखे बन्द होती जा रही थी। शरीर से बहुत ज्यादा खून निकल रहा था। कुछ समय बाद मैं बिल्कुल बेहोश हो गया। होश आया तो देखा, हमारे घर वाले और मोहल्ले वाले हमारे पास खड़े थे। उस समय हमें बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा था। हम जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। हमने घर वालों से पूछा, ''हमको क्या हुआ है?'', हमारे घर के लोगों ने रोते हुए बताया, ''तुम्हे पुलिस वालों ने गोली मारी है।'' फिर हमने पूछा, ''हमने क्या किया कि हमें गोली मारी?'', तब मोहल्ले के लोगों ने बताया कि कोल्हुआ मस्जिद पर कुछ लोगों ने रंग फेंक दिया था, इसी बात पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय में विवाद हो गया और पुलिस वालों ने गोलियाँ चलानी शुरू दी जिसमें तुम्हें भी गोली लगी। अस्पताल में हम 13 दिन तक बेहोश पड़े रहे। उस समय हमारा इलाज चन्दे के पैसों से चल रहा था और आज भी चन्दे से ही चल रहा है। हम अपने समुदाय के लोगों का यह सहयोग कभी नहीं भूलेंगे। हिन्‍दु-मुस्लिम विवाद ने हमें अपाहिज बना दिया।

इस घटना से मेरी स्थिति ही बिगड़ गयी। इसके पहले हम बनारसी साड़ी की बुनाई का काम करते थे, लेकिन मेरा पैर गोली लगने से खराब हो गया। वैशाखी का सहारा लेकर चलना पड़ रहा है। पहले अपनी कमाई से घर में भी सहयोग करते थे और अपना खर्च भी चलाते थे। अब जिंदगी बहुत कठिन और भारी लग रही है। पहले की तरह दोस्तों के साथ घुमना-फिरना एक दम बंद हो गया।  अब सभी से दूर हो गये हैं। यह सब देखकर बहुत गुस्सा आता है। दिमाग विचलित हो जाता है। एक बात का बहुत अफसोस है कि पहले कमाकर खाते थे आज एक समय के भोजन के लिए मोहताज है। शादी-ब्याह हो जाती, अब यह भी एक सपना हो गया है।

एक साल होने जा रहा है, लेकिन दर्द लगातार रहता है। जिससे हम बहुत परेशान हो जाते हैं। किसी तरह मोहल्ले के लोग मेरा भरण-पोषण कर रहे हैं। पुलिस का यह अत्याचार हम कभी नहीं भूल सकते। सरकार ने अभी तक दोषियों को सजा नहीं दी और न ही हमें किसी प्रकार का आर्थिक मदद ही मिला सरकार की तरफ से। हमारे साथ कुल आठ लोग घायल हुए थे। दो की तो मृत्यु हो गयी। जब-जब यह घटना मेरे दिमाग़ में आती है, हम विचलित हो जाते हैं। हम अपनी लड़ाई कानून के सहारे लड़ना चाहते हैं, क्योंकि कानून सबको न्याय देता है। हमारे लिए न्याय तभी सफल होगा, जब दोषियों को सजा मिलेगी।

आज हम अपाहिज की तरह जिंदगी जी रहे हैं। कई जगह इलाज भी करवाये। 4 फरवरी 2010,  वृहस्पतिवार के दिन बी0एच0यू0 स्थित सर सुन्दर लाल अस्पताल गये। जहां डाँक्टर ने एक लाख रुपये इलाज के लिए कहा। हड्डी टूट गई है और खोखली भी हो गई है। इन्फेक्‍शन हमेशा रहता है, जिससे गोली का घाव नहीं भर पा रहा है। पाण्डेयपुर स्थित संस्था से सहयोग मिला, डॉ0 शकील (खजूरी) से इलाज करवा रहे हैं। जिससे अब थोड़ा चल-फिर रहे हैं और अपना काम जैसे – कपड़ा साफ करना, इत्यादि कर लेते हैं। लेकिन भोजन के लिए दूसरे पर आश्रित हैं। अपने घर से भोजन नहीं मिलता है। कभी-कभी कोई पड़ोसी या दोस्त भोजन करा देता है। बाकी दिन किसी से पैसा मांग कर बिस्कुट और पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं।

जब बी0एच0यू0 में डॉक्टर साहब ने इलाज में एक लाख रुपये के खर्च की बात कही तो सुनकर बेचैनी और घबराहट महसूस होने लगी थी कि एक लाख रुपया कहाँ से आयेगा। इलाज नहीं होगा। हम इसी तरह कब तक रहेंगे। हम सोच रहे थे कि लोगों के सहयोग से कुछ पैसों का इन्तजाम हो जाए, हम ठीक हो जाएं तो फिर से काम-धंधा करके अच्छी जिंदगी जीयेगें। लेकिन अब जिन्दगी जीना दुश्‍वार लग रहा हैं। इलाज के लिए भी अकेले कहीं नहीं जा पाते। परिवार का कोई सदस्य मदद नहीं करता। किसी दोस्त या पड़ोसी के सहयोग से अस्पताल जाते हैं नही तो मजबूरन इलाज नहीं हो पाता।

आप लोग से इतना खुल कर अपने दर्द को बताया। इससे हमको बहुत राहत महसूस हो रही है। इसके पहले जो भी लोग मुझसे पुछते थे कि क्या हाल है अब्‍दुर रहमान? तब बहुत गुस्सा आ जाता था। आप लोगों ने मुझे 10 मिनट का ध्यान-योग करा कर मेरे थकावट और दर्द को और कम कर दिया। हम अब रोज यह योगा करेंगे। हम यह चाहते हैं कि इस कहानी को कोर्ट (कानून), अखबार, पत्रिका में प्रकाशित किया जाए। जिससे लोगों को पता चले कि किस तरह एक सीधा-साधा बुनकर अपाहिज हो गया। लोग जानें कि इसके पीछे कौन लोग हैं और फिर लोग उन्‍हें बददुआ दें।

रेखा और आनंद प्रकाश के साथ बातचीत पर आधारित

डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करेंगे, ऐसा उन्‍होंने वायदा किया है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

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" हिन्‍दु-मुस्लिम विवाद ने हमें अपाहिज बना दिया : अब्‍दुर रहमान " को 1 प्रतिक्रिया

  1. is lekh ko padhkar bahut dukh hua,bahut takleef hui,lekin haqeeqat ye hai ki abdur rahman jaise saikdon logon ki aisi hi kahani hai jo ki saampradaayik hinsa ka shiakar hue,unhone kam-o-besh har dange me police ke inhi zulm-o-sitam ko saha hai.tareekh gawah hai is baat ki hindustan jab angrezon ke zer-e- iqtidaar mein tha,tab bhi shayad communalism ko lekar itne zulm–sitam nahi hue honge, [haalaanki is baat se bhi inkar nahi kar sakte ki ye beej bhi unhi ka boya hua hai]lekin azadi ke baad ab tak jitne bhi violence hue usmein ek khas community ko hi target kiya gaya.yahan par vistaar se batane ki zarurat nahi hai bahut saare udhaaran bhare pade hain.lekin media ne aur sarkar is sachchai ko aam logon se dur rakhne mein hamesha bahut ahm role ada kiya hai.kuchh scholors ko chhod kar is baat ki sachchai koi nahi samne laya.raha sawal qanoon aur insaaf ka jaise ki abdur rahman saahab ko is baat ki ummeed hai ki shayad sarkar kabhi un par nazr-e- karm kare,unko insaaf mile to shayad aisa kabhi mumkin nahi hoga kyonki abhi recently maalegaon bum dhamakon ke baare mein jo baat samne aayi hai,hamare prashaasan aur hamare qanoon ko use suchh manne mein zahmat ho rahi hai.begunahi saabit hone ke baawajood bhi unhe ab tak riha nahi kiya gaya hai.to hum is baat se samjh sakte hain ki ek maasoom insan ki yeh ummeed dil ko kitna hila dene wali hai.rahman sb.ko aam logon se imdad mil sakti hai,unki ye aawaaz jahan tak jayegi,log unka pura sahyog denge lekin sarkar se ye ummeed bekar hain. sarokar ne jis himmat jis saahas ke sath aise logon ko dhooda hai aur unhe apne lekhon mein jagah di hai,unke is saahas aur is jazbe ko bahut bahut badhai.mai manti hu ki is tarah ki sachchai ko log padhna chahte hain,wo media mein iske liye bhi jagah dekhna chahte hain.mai ummeed karti hu ki aise hi lekh aage bhi padne ko milte rahenge.

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