Wednesday, April 13, 2011

re: Greenpeace and PVCHR cordially invite you to participate in RGGVY social audit in Uttar Pradesh (Azamgarh district) on May 10



Greenpeace and PVCHR cordially invite you to participate in RGGVY social audit in Uttar Pradesh (Azamgarh district) on May 10

Dear friend,

Access to energy is an issue that India is still struggling with its millions of households remaining in dark even after 64 years of independence. Rural India has been neglected in-spite of large capacity additions in power generation in the country. Quality and reliable power is still a dream for most rural parts of the country. A revolutionary step is required to provide "Energy Justice" to rural areas.

 

Government of India initiated Rajiv Gandhi Grameen Vidyutikaran Yojana (RGGVY) in 2005 with aim to provide electricity access to all household by 2012. It is one of the flagship schemes of the government.

We certainly appreciate the Government's initiative to provide "electricity to all". However, we have noticed some of the major policy and implementation hurdles which definitely should be addressed before rolling the scheme out again for 12th five year plan (2012-17).

 

Greenpeace along with People's Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR) in Uttar Pradesh will carry out social audit of the scheme. The aim of the audit is to bring out the implementation reality of the scheme and examine whether the mandate of the scheme has fulfilled aspirations of Rural India or not.

 

We are cordially inviting you/your organisation to be part of the "Public Hearing" (Jan Sunvai) in Uttar Pradesh. The date of the "hearing" is

 

May 10 (Uttar Pradesh – Azamgarh District)

Venue: Shahpur Kanungo ka bagicha (opp. khutahan primary school), Rashepur Bazar

Looking forward to your support and cooperation to make the hearing successful

Sincerely

Akshay Gupta                                                                    Dr. Lenin Raghuvanshi

Greenpeace                                                                       Vigilance Committee on Human Rights

Mob: +91 9176036002                                                       Mob: +91 9935599333

Email: agupta182004@yahoo.com                                    Email: pvchr.india@gmail.com

 

 
 
 
--
Dr. Lenin
Executive Director/Secretary General -PVCHR/JMN
Mobile:+91-9935599333
 
Hatred does not cease by hatred, but only by love; this is the eternal rule.
--The Buddha
 
"We are what we think. With our thoughts we make our world." - Buddha
 
 
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Tuesday, April 05, 2011

Fwd: Petition against witch hunting in Sonbhadra of UP in India



---------- Forwarded message ----------
From: UP Police Computer Cetre Lucknow <uppcc-up@nic.in>
Date: 2011/4/5
Subject: Fwd: Petition against witch hunting in Sonbhadra of UP in India
To: DIG Police ComplaintCell Lucknow <digcomplaint-up@nic.in>
Cc: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>


Sir
The message from above mail is forwarded to your kind attention and response.
UPPCC


---------- Forwarded message ----------
From: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>
To: upendra dubey <upendra_amit2005@rediffmail.com>
Date: Mon, 04 Apr 2011 20:26:02 +0530
Subject: Petition against witch hunting in Sonbhadra of UP in India
Please find the stories of witch hunting in Sonbhadra of UP.Please take immediate and appropriate action for rule of law and rehabilitation of victims.
case No.1:
 

पूर्वांचल के सोनभद्र जिले में  'डायन' बता कर औरतों, ख़ास कर दलित और पिछड़ी जातियों की महिलाओं के साथ अमानवीय व्‍यवहार का सिलसिला लंबे से चलता आ रहा है। बीते कुछ सालों से 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति (PVCHR)' की टीम लगातार इन मसले पर काम कर रही है। उनके हस्‍तक्षेप से न केवल इस भयावह ज़ुल्‍म से पर्दा हटना शुरू हुआ है बल्कि पीडित महिलाओं के पुनर्वास की दिशा में पहल भी शुरू हुई है। PVCHR का यह काम देश के अन्‍य हिस्‍सों में ऐसी कुरीतियों और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों के लिए वाकई प्रेरक है। लेनिन रघुवंशी अगले कुछ दिनों में डायन बता कर सतायी गयी कुछ और महिलाओं की ख़ुदबयानी सरोकार से साझा करेंगे। फिलवक्‍़त पेश है जगेसरी की कहानी उन्‍हीं की जुबानी : संपादक

 

 

बेजुबान कर दी गयी जोगेसरी देवी

मेरा नाम जगेसरी देवी, उम्र 32 वर्ष है। मेरे पति रमाशंकर हैं। मेरे चार लड़के तेजबली 11 वर्ष, रामबली 6 वर्ष, श्याम नारायण 4 वर्ष और राजनारायण एक वर्ष के हैं। मैं ग्राम-करहिया, पोस्ट-म्योरपुर, थाना-दुद्धी, ब्लॉक-म्योरपुर तहसील-दुद्धी, जिला-सोनभद्र की रहने वाली हूँ। मेरी शादी जुबैदा के आसनडीह में हुई थी। चार वर्षों तक मैं ससुराल में रही। बाद में मायके करहिया में अपने बाबूजी की देखभाल करने आ गयी। मेरी बड़ी तीन बहनें अपने ससुराल में ही रहती हैं। खेती के लिए आठ बीघे ज़मीन है जिस पर मैं और मेरे पति खेती करके अपना जीवन बीता रहे हैं।

मेरी चचेरी बहन दुल्लर और बहनोई सहदेव जो मेरे घर से तीन घर की दूरी पर रहते हैं। इनको पाँच लड़के और दो लड़कियाँ थी। कुछ वर्ष पहले बीमारी के कारण इनके दो लड़के मर गये थे, अभी सानिया और एक छोटा बच्चा जो काफी समय से बीमार चल रहा था। मंगलवार की रात (31.07.2010) को सानिया मर गयी। यह ख़बर सुनते ही मैं भागी-दौड़ी उनके घर गयी। वहाँ पर पहले से ही चार औरतें और ओझा खेलावन झाड़-फूंक कर रहे थे। मैं अन्दर बैठी थी। मेरे बहनोई अपने घर के दरवाजे़ पर लाठी, डंडा और टेंगारी लेकर पैर फैलाकर बैठ गये।

बार-बार यही बात मुझे देखकर कहते 'डायन' मेरे लड़के को खा गयी है। मैं तुम्हे नहीं छोड़ूंगा। देखें बाहर कैसे निकलती है। यह बात सुनकर मुझे डर लगता था। सेाचती, यह क्या कह रहे हैं। किसी तरह रात गुज़री, सुबह हुयी।

मौक़ा मिलते सहदेव जैसे ही दरवाजे़ से हटा मैं अपने घर जल्दी से चली आयी। अगर वह आ गया तो फिर मुझे नहीं जाने देगा। घर आकर झाड़ू बर्तन करने लगी। कुछ दिन बीता। शायद उस समय बारह बज रहे थे। आस-पास के लोग लाश दफ़नाने के लिए आने लगे। मैं अभी घर का काम कर ही रही थी। तभी सहदेव ने मुझे बुलाया 'यहाँ आओ'। मैं रात की बात से डरी थी, लेकिन मरनी होने के कारण वहाँ गयी। गाँव के सभी लोग बैठे थे। क़रीब साठ लोग थे। ओझा झाड़ फूक कर रहा था। मैं भी गाँव के लोगों के बीच में जाकर बैठ गयी। सहदेव ने मुझे आगे आने को कहा। मैं जा रही थी, सोच रही थी कि सभी बैठे हैं, वह सिर्फ़ मुझे ही क्यों बुला रहा है।

क़रीब पहूंच कर मैंने जीजा से पूछा, क्या बात है। वह मेरे हाथ में मरी हुई सानिया देकर कहा 'डायन  इसे जिला, नहीं तो मैं तुम्हे नहीं छोड़ूगा।' ओझा खेलावन मेरे चारों बगल घूमता और झाड़-फूंक करता। बच्चे को गोद में लेकर मैं डरी-सहमी हुई बैठी थी। काफी झाड़-फूंक करने के बाद सहदेव ने मुझे अपनी जुबान निकालने के लिए कहा। सुनते ही मैं घबरा गयी। यह अब क्या करेगा मेरे साथ। गाँव के लोग चुपचाप बैठकर तमाशा देख रहे थे। तभी सहदेव ने मुझे कहा, 'अपनी जुबान निकालो इस पर चिया चरायेंगे (जुबान के ऊपर चावल का दाना रखकर मुर्गी से चराना)।' मेरा दिल अन्दर से धक-धक कर रहा था। जैसे ही जुबान बाहर निकाली, सहदेव ने चालाकी से अपनी हाथ में ब्लेड लिया था। मैंने उसे नहीं देखा था। मेरे जीभ पर वार किया, जीभ कट गयी।

मैं दर्द से तड़पने लगी। रोती-बिलखती रही। सोचा, ये क्या हुआ। आस पास बैठे किसी ने मुझे सहारा नहीं दिया। न ही सहदेव को ऐसा करने से मना किया। मुँह से ख़ून निकलने लगा। देखते-देखते ज़मीन पर ढेर सारा ख़ून फैल गया। मेरे पति भी डर की वजह से नहीं बोले। सारा कपड़ा ख़ून से लथपथ हो गया था।

यही बात दिमाग़ में आती रही कि यह क्या हुआ। क्या सचमुच मैं डायन हूँ? मेरी आँखों के सामने ओझा और सहदेव ने मेरी कटी हुई जुबान के छोटे-छोटे टुकड़े कर, उसमें चावल का दाना मिलाकर मुर्गी से चरवाया, फिर सभी लोग लाश लेकर दफ़नाने चले गये। उनके पीछे-पीछे मेरे पति भी गये।

वहाँ पर उन्होंने लाश को दफ़नाने के बाद उसकी कब्र पर मुर्गी छोड़ कर चले आये। वह मुझे उसी हाल में छोड़ कर चले गये। आस पड़ोस की औरते़ भी मुझे डायन समझ कर अकेले तड़पते हुए छोड़ कर चली गयीं। मैं रात भर बिना दवा के रोती-बिलखती रही। सुबह से कुछ खाना भी नहीं था। जुबान कटने के बाद तो मुझसे पानी भी नहीं पीया जा रहा था। रात भर मैं कलपती रही। किसी ने मेरी मदद नहीं की। छोटे-छोटे बच्चों को किसके भरोसे मैं छोड़कर अस्पताल जाती। आज भी इन बातों को याद करती हूँ तो उन लोगों पर गुस्सा आता है। सोचती हूँ, क्या सचमुच मैं 'डायन' हूँ?

सुबह हुई, चारो तरफ़ बात फैल गयी। मैं म्योरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर दवा लेने गयी तो वहाँ के डॉक्टर ने मेरे पति से पूछा, 'क्या हुआ?' फिर मेरे पति ने उन्हें सारी बातें बतायी। तभी वहाँ पर दुद्धी थाना के दारोगा और सिपाही एक जीप से आये। मुझे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया।

बार-बार दारोगा मुझसे पूछते कि क्या हुआ था। मेरे मुँह से आवाज़ नहीं निकलती, बोलने की कोशिश करती तो मेरा घाव दर्द करता। सबने मेरे पति से बयान लिया। चार दिन तक मेरा इलाज हुआ। मेरे बच्चे घर पर अकेले थे। पति मेरी देखभाल करते। बस्ती से कोई भी मुझसे मिलने नहीं आया। मुझे हर वक्त अपने बच्चों की चिंता लगी रहती थी। सोचती, कहीं उन लोगों के साथ वे लोग कुछ उल्टा-सीधा न  करें।

 

जोगेसरी के संघर्ष को सलाम और सम्‍मान

मैं अस्पताल से घर वापस आयी तो पता चला सहदेव का छोटा लड़का जो बीमार था वह भी मर गया। यह सुनते ही मेरा जी फिर से धक-धक करने लगा। मेरे हाथ पैर काँपने लगे। बार-बार यही सोच कर मन शान्त करती कि सहदेव और ओझा तो पुलिस कि गिरफ्त में है।

लेकिन अभी भी डर लगता है कि जब वे छूटकर आयेंगे तब उनका व्यवहार हमारे प्रति कैसा होगा। मेरे पति बहुत ही सीधे हैं। वे लोग मुझे 'डायन' कहकर मेरी ज़मीन हड़पना चाहते हैं। बस्ती में पहले भी एक परिवार के लोग झगड़ा करके बेघर कर चुके हैं। डायन कहकर मेरी जीभ काट ली। अब वे मुझे और मेरे परिवार को यहाँ से भगाना चाहते हैं। यहीं चिन्ता दिन-रात खाये जा रही है। रात को नींद नहीं आती। मन हमेशा घबराता है। मैं ढंग से खा भी नहीं पाती। गिलास से सीधे पानी नहीं पी पाती। आवाज़ भी लड़खड़ाती है। जब बोलती हूँ तो जुबान लड़ती है।

मैं चाहती हूँ कि जिन लोगों ने मेरे साथ ऐसा किया। मुझे 'डायन' बनाया, उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिले। अब भी सहदेव के डर से बस्ती के लोग मेरे पास नहीं आते। बाहर का कोई भी मिलने आता है तो वे लोग कहते हैं कि लिखने से क्या होगा। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह सुनते ही मुझे बहुत ज़ोर से गुस्सा आता है।

आपको अपनी पीड़ा साझा कर के मेरा मन हल्का हुआ है। आपने जब मेरी बात को पढ़कर सुनाया तो मेरा विश्वास बढ़ा है। मेरे अन्दर का डर कुछ कम हुआ है। मैं चाहती हूं कि इनको ऐसी सज़ा मिले कि फिर कोई ऐसा करने की हिम्‍मत न जुटा न पाए।

(फ़रहत शबा ख़ानम के साथ बातचीत पर आधरित)

Case No2:\
 
http://www.sarokar.net/2011/04/डायन-शब्द-अब-भी-मेरी-कानों/

पीडिता सोमारी देवी

मेरा नाम सोमारी देवी है। मेरी उम्र 40 वर्ष है। मेरे पति का नाम दिनेश गौड़ है। मेरे 3 लड़के हैं  जो विवाहित है। बड़ा लड़का संजय है। वह सिर्फ़ साक्षर है। दूसरा लड़का रघुनाथ प्रसाद, तीसरा दीन दयाल है। सभी लड़के बाल बच्‍चेदार हैं। मैं अबकी बार वन विभाग में सदस्य बनी हूँ। मैं थोड़ा बहुत पढ़ी-लिखी हूँ। मेरे पास दो बीघे ज़मीन हैं, जिसमें मैं खेती-बारी करती हूँ। मैं ग्राम – बलियारीपुर, पोस्ट – म्योरपुर, थाना – दुद्धी, ब्लाक – म्योरपुर तहसील – दुद्धी, जिला – सोनभद्र की रहने वाली हूँ।

घटना का वह दिन आज भी भुलाये नहीं भूलता। 14 जनवरी 2010, मकर संक्रांति का त्यौहार था। सभी हंसी-खुशी से त्‍यौहार मना रहे थे। मैं घर से निकली, तभी याद आया गाय बाँधना है। उस समय लगभग 2 बज रहे थे। मैं गाय को खूंटे से छोड़ी और उसे बांधने घर से थोड़ी दूर सड़क पार बांधने जा रही थी।  मेरे पति मेरे साथ थे। जो गाय को पीछे से हांक रहे थे। गाय को खूँटे से बांध कर मैं खड़ी थी तभी मेरे पास शिवनारायण गौड़ आया और मुझसे बातों-बातों में शरारत करने लगा।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। आखिर बात क्या है। शिवनारायण से इससे पहले मैं कभी बात नहीं की थी, ना ही उससे कोई झगड़ा या विवाद हुआ था।

जब तक मैं कुछ समझ पाती शिवनारायण मुझे डायन कहते हुये, बग़ल में जल रहे कौड़े में झोंक दिया। आग की लपटे थोड़ी धीमी थी। मेरी साड़ी पीछे के बगल़ बिल्कुल जल गई। मैं सुती पेटीकोट नहीं पहनी रही होती तो मेरा पूरा अंग जल जाता। मेरे पति दौड़कर मुझे बचाये। बायें और दाहिने पैर में और कमर के नीचे मैं जल गई थी। उस समय मैं दूसरे के सहारे घर तक आयी। शिवनारायण वहाँ से भाग गया। सोमारी देवी के जज्‍बे और संघर्ष को नमनघर आने पर

इसी साड़ी में दरिन्‍दे ने जलता छोड़ दिया

मेरी बहुओं ने घाव पर मरहम लगाया और मेरी साड़ी बदली। मैं बार-बार यही सोच रही थी उसने मुझे डायन कहा। मुझे जलने की चिंता ज्‍़यादा नहीं थी, उस बात की थी जो मेरी कानों में बार-बार गूँज रही है, डायन कहे जाने की। उसके पहले किसी ने मुझे ऐसा नहीं बोला था। उस घटना को आज भी याद करती हूँ तो शरीर में बिज़ली जैसी दौड़ जाती है। सोचती हूँ, मेरे पति मौके़ पर न होते तो वह मुझे जान से ही मार डालता। रह-रह कर मुझे गुस्सा भी आता है।

उसने किसलिए मुझे डायन कहा मैं नहीं जानती, लेकिन समाज में उसने मेरी इज्जत उछाल दी है। सभी की जुबां पर है कि कोई तो बात रही होगी। जब इस बात को सूनती हूँ तो मन उदास हो जाता है। किस-किस के सामने से अपनी बेगुनाही साबित करूँगी। सोच-सोच कर आँखों में आँसू आ जाते हैं। घटना के दूसरे दिन मैं पति के साथ दुद्धी थाने गई। अपने साथ हुई घटना को बतायी और एफआईआर दर्ज हुआ। पुलिस वाले उसी दिन शिवनारायण को पकड़ कर थाने पर ले आये। थाने पर उसने अपनी ग़लती स्वीकार की और बोला, 'मैं उस समय नशे में था, मुझे कुछ भी होश नहीं था'। उसने पैरों पर गिर कर माफ़ी माँगी। उस समय तो ऊपर से मैंने उसे माफ़ कर दिया, लेकिन मन अभी तक उसे माफ़ नहीं कर सका है। औरत की समाज में यही इज्जत मिली है, जिसको जो मन में आए, कह दें। अपनी बातों को, दुःख को बाँट कर इस समय बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ। मैं चाहती हूँ कि जिसने मेरा साथ यह ग़लत व्यवहार किया है उसके खिलाफ़ कार्यवाही हो और मुझे न्याय मिले।

 (फ़रहत शबा ख़ानम और मीना कुमारी पटेल के साथ बातचीत पर आधारित

 
VARANASI: It is impossible for Jagesari Devi (32), a tribal woman of Sonebhadra district, to forget the fateful day when she became a victim of witch hunting and her tongue was chopped off. She was branded a 'dayan' (witch) by a local 'ojha' (sorcerer). Though her wounds have healed, the scars remain forever. The unforgettable nightmare has rendered the Holi festival colourless for her.

"Am I really a dayan," wonders Jagesari, wife of Ramashankar and a native of Karahiya village under Dudhi police station in Myorpur Block of Sonebhadra district. Following this inhuman act of others, today she can neither speak properly nor can eat or drink with ease.

In her testimony to a human rights organisation, Peoples Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR), she narrated her ordeal with the hope to get justice.

The daughter of her brother-in-law Sahdev died due to illness on August 1, 2010. When she went to his house to condole the death, she saw that a local sorcerer was also present there. He started claiming that Jagesari was a dayan and had caused the death. Soon, the orthodox people were supporting the man who chopped off her tongue in punishment. She cried out for help, but no one heard her cries. Somehow, her husband managed to rush her to a hospital for treatment.

"After being labelled a witch and facing physical torture and social humiliation, how can she be expected to lead a normal life?" questioned Lanin Raghuvanshi of PVCHR. The PVCHR, in association with the Rehabilitation and Research Centre for Torture Victims of Denmark, organised a programme of public hearing recently in the city to hear the story of Jagesari and other such victims of witch hunting. The volunteers tried to document the cases of witch hunting in remote villages of Sonebhadra.

According to Raghuvanshi, poor and low-caste women are easily branded as witches, mostly in tribal areas. The woman once branded a witch finds it impossible to get rid the stigma. She is subjected to violent acts like physical torture and social humiliation, even to the extent of being stripped naked.

Manbasia (45) is another woman who has been subjected to inhuman ordeal in Ghaghari Tola Sahgora village, under Babhani police station, in Myorpur block of Sonebhadra district. After the demise of a boy in the village, she was not only attacked with sharp weapons but also paraded naked in public on July 17, 2010. "I was not a dayan, then why was I paraded naked?" she questioned. Her husband Jodhilal said he had to mortgage his land for his wife's treatment.

However, officials of both police stations categorically denied that such cases had ever taken place in their respective areas. Both Vijaymal Singh Yadav, inspector of Dudhi police station, and Asharam Goyal, inspector of Babhani police station, when contacted over phone on Thursday told TOI that they had no information about witch hunting or practice of witchcraft in their area. However, in another case of witch hunting, a woman Somari Devi (40), wife of Dinesh Gond and native of Baliyari village under Dudhi police station, was also humiliated on January 14, 2011. A local native after branding her a witch, pushed her into fire. Her saree was burnt, however, her husband saved her. In her testimony, she alleged that the police did not register her complaint. Instead of punishing the culprit, the police let him off scot-free, she said.

Raghuvanshi says there are many factors responsible for the prevalence of witch hunting. One of the reasons is socio-economic. Generally witch hunters do so for property (grabbing) reasons. Sometime women become victims for refusing sexual advances. But, in most of the cases, women suffer because they are unable to get any help from the society. "Most of the cases go unreported," he said and added "police do not play a positive role in stopping harassment of women in the name of witchcraft practice."

"We are forwarding the testimonies of these women to the National Human Rights Commission (NHRC) to draw its attention towards this social evil and get victims of witch hunting some justice," Raghuvanshi said and added it was vary sad that the human rights of women were being violated openly in the name of witchcraft practice.